दिव्य विचार: ब्रम्हचर्य का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: ब्रम्हचर्य का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज शिथिलता आ गई । मनोविज्ञान कहता है मनुष्य के जीवन में चौदह-चौदह वर्ष के चार अलग-अलग सर्कल होते हैं। शुरुआत के चौदह वर्षों में मनुष्य का तीव्र मानसिक विकास होता हैं। मनुष्य के जीवन में जब तक यौन विकार प्रकट नहीं होते तब तक उसके मानसिक विकास की गति बहुत तेज होती है, कभी ये भारत में चौदह वर्ष थी, अब घटकर बारह वर्ष हो गई। उसके बाद के चौदह वर्षों में हमारे मन में और ज्यादा परिपक्वता आती हैं। यानि ये चौदह वर्ष से अट्ठाइस वर्ष के ये जो पल होते हैं जो हमें अपने मानसिक रूप से और अपने बौद्धिक विकास को और पुष्ट करने का अच्छा दौर रहता हैं। संत कहते हैं यही ब्रह्मचर्य आश्रम की भूमिका है व्यक्ति यदि बाईस से छब्बीस साल की उम्र तक ब्रह्मचर्य व्रत से अपना जीवन जीता है निर्दोष ब्रह्मचर्य का पालन करता है और उसके बाद गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है तो वह व्यक्ति योग्य संतान को जन्म देने का श्रेय पाता हैं। उसके जीवन में कोई रोग-शोक आदि प्रकट नहीं होते। वह अपने आपमें सक्षम बना रहता हैं। ये सारी बातें पुरुषों की प्रधानता से की जा रही है। उसके बाद अट्ठाईस से लेकर के ब्यालिस की उम्र तक मनुष्य के हृदय में तीव्र जीवेषणा प्रकट होती हैं और ब्यालिस से छप्पन साल की उम्र के दौर में मनुष्य की जीवेषणा धीरे-धीरे मंद होना शुरु हो जाती हैं और छप्पन वर्ष को छू जाने के बाद व्यक्ति की जीवेषणा खत्म हो जाती है और मृत्युएषणा प्रारंभ हो जाती है। ये मनोविज्ञान के ज्ञाता कहते हैं, मैं जब इसे भारतीय परंपरा के अनुसार देखता हूँ तो मुझे ये बात बिल्कुल फिट दिखती है। प्रारंभिक जो दो सर्कल है वह हमारे ब्रह्मचर्य आश्रम का है बाद के जो दो है वह गृहस्थाश्रम का है। चौदह से अट्ठाईस के बाद तुम्हारी जितनी जीवेषणा है, अपनी जीवेषणा की पूर्ति करो दुनिया के जितने भी सफलतम लोग है उनमें अधिकतर ऐसे लोग है जिन्होंने पैंतीस वर्ष की उम्र के आसपास अपनी पहचान बना ली।