6 माह में मरे 23 बाघ, सरकार तक पहुंची सिर्फ 7 की पीएम रिपोर्ट
सतना। सरकार एक ओर बाघों के संरक्षण के लिए तमाम योजनाओं का संचालन करते हुए करोड़ों रूपए फूंक रही है तो दूसरी ओर प्रदेश में बाघों की लगातार हो रही मौतों पर अंकुश लगाने में प्रभावी भूमिका निभा सकने वाली पोस्टमार्टम रिपोर्ट को नजरंदाज किया जा रहा है। प्रशासनिक तंत्र बाघ संरक्षण को लेकर कितना संजीदा है इसका अंदाजा इसबात से लगाया जा सकता है कि 1 जनवरी 2020 से लेकर 21 अक्टूबर तक सतना समेत समूचे प्रदेश में 23 बाघ मरे या मारे गए। इनमें से केवल 7 बाघ की पीएम रिपोर्ट 4 के अंतिम जांच प्रतिवेदन ही सरकार के पास अब तक पहुंचे हैं।
बाघ की पीएम रिपोर्ट बाघ संरक्षण के लिए बेहद अहम मानी जाती है। कई वर्षों तक वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के लिए काम करने वाले उत्तराखंड के सेवानिवृत्त पीसीसीएफ-एचएफएफ श्रीकांत चंदोला बताते हैं कि पीएम रिपोर्ट से ही पता चलता है कि बाघ की मौत कैसे हुई। वन्य प्राणी विशेषज्ञ राजेश दीक्षित कहते हैं कि बाघों की मौत के कारण प्राकृतिक भी हो सकते हैं और मानव निर्मित भी। मसलन कई बार शिकारी करंट, जहर, फंदा या बंदूक का इस्तेमाल कर बाघों को मौत की नींद सुला देते हैं।
इसके अलावा बीमारी, वायरल इंफेक्शन या आपसी संघर्ष भी वनराज को मार देता है। ऐसे में यदि सरकार के पास अविलंब पोस्टमार्टम रिपोर्ट पहुंचती है तो सरकार मौत के सही कारण का पता चलते ही बाघों का जीवन बचाने वैसे इंतजाम कर देती है। यदि मौत का कारण करंट, जहर या शिकार हो तो वहां शिकारियों की मुश्कें कसने बल तैनात कर दियाजाता है और यदि क्षेत्र विशेष में कोई इंफेक्शन है तो वहां वाइल्ड लाइफ डाक्टर्स की टीम उतारी जाती है लेकिन जब सरकार तक उनकी मौत का सही कारण बताने वाली पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही नहीं पहुंचती तो सरकार बाघ संरक्षण के लिए कैसे कारगर कदम उठाती होगी इसका अंदाजा सहसा ही लगाया जा सकता है।
सतना में 2, बांधवगढ़ में सर्वाधिक 10 बाघ मरे
प्रदेश में मौजूदा वर्ष में महज 6 माह के भीतर 23 बाघ मरे हैं। यह खुश किस्मती रही कि चालू साल के जनवरी माह से लेकर अप्रैल तक एक भी बाघ की मौत राज्य में नहीं हुई। मौजूदा वर्ष पहले बाघ की मौत की खबर 1 अप्रैल को कान्हा टाइगर रिजर्व से आई तो दूसरी खबर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से 5 अप्रैल को आई। यहां से शुरू हुआ बाघों की मौत का सिलसिला साल भर चलता रहा और अक्टूबर के अंत तक 23 बाघ मर गए। इनमें से दो बाघों की मौत क्रमश: 16 अप्रैल और 20 सितंबर को सतना वन मंडल में भी हुई।
देख्रिए ऐसा नहीं है। जहां तक सतना वन मंडल क्षेत्र में काल कवलित हुए बाघों का सवाल है तो पीएम रिपोर्ट भेजी जा चुकी है। एक की रिपोर्ट शुक्रवार को ही भेजी गई है। दरअसल सितंबर माह में जिस बाघ की मौत हुई थी उसकी रिपोर्ट आने में देरी हुई। बीते दिनों उच्च स्तर से रिपोर्ट मांगी गई तो कल भेज दी गई है।
राजेश राय, डीएफओ
मप्र में तो बाघ अपनी किस्मत से जिंदा है। रिपोर्ट देख लीजिए तो सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। दो दर्जन बाघों की मौत हुई और पीएमरिपोर्ट केवल 7 की सरकार को दी गई है। ऐसे में बाघ संरक्षण की मुहिम केवल कागजी रह गई है। सरकार को संजीदगी से ऐसी गफलत करने वाले अधिकारियों से निपटना चाहिए ताकि बाघ संरक्षित रह सकें और प्रदेश का टाइगर स्टेट का रूतबा कायम रह सके।
राजेश दीक्षित, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट