150 का था करार, 10 रुपए अदा किए और करा लिया नामांतरण
सतना | राजस्व अधिकारियों की मेहरबानी से कब किसकी जमीन किसके नाम हो जाय, इसका कोई भरोसा नहीं है। फर्जी कागजों पर तो अधिकारी पलक झपकते कार्रवाई कर देते हैं लेकिन मूल दस्तावेजों पर यदि नियमन कार्रवाई करानी हो तो भू स्वामियों के लिए वह लोहे के चने चबाने जैसा होता है। बहुचर्चित अमौधा हलके की आराजी क्रमांक-688 का मामला कुछ ऐसा ही है, जिसमें महज 10 रूपए के बयाने का करारनामा दिखाने वाले वेरी रेवरेंट के नाम पर नामांतरण कर उसे राजस्व अधिकारियों ने भू स्वामी मान लिया। हालांकि हाईकोर्ट ने इस मामले में जिला प्रशासन द्वारा जारी आदेश पर स्थगनादेश दे दिया। लेकिन 12 दिन बीत जाने के बाद बावजूद अब तक न तो वेरी रेवरेंट का नाम विलोपित किया गया है और न ही मूल भूस्वामी के नाम खसरे में प्रविष्ट किए गए हैं।
क्या है मामला
अमौधा हलका की जिस बेशकीमती भूखंड को लेकर दिए गए एसडीएम के फैसले पर फिलहाल हाईकोर्ट ने स्थगनादेश दिया है, उस भूखंड को हासिल करने के लिए बेरी रेवरंट ने बेशक आवेदन लगाया हो लेकिन दस्तावेज बताते हैं कि उक्त भूखंड का सौदा कभी पूरा हुआ ही नहीं था। मामला तहसील रघुराजनगर अंतर्गत अमौधाकला स्थित आराजी क्रमांक-688 रकबा 2.78 एकड़ (1.125 हे.)के स्वामित्व को लेकर चल रहे विवाद का है । यदि राजस्व अभिलेखों को देखा जाय तो वर्ष 1945-46 में उक्त आराजी कीरत सिंह के नाम थी।
राजस्व शाखा में उपलब्ध खसरे बताते हैं कि 1963-64 से कीरत सिंह की आराजी नं. 688 में बेराउंड के भाई अमन जनरल सेक्रेट्री एसोसिएशन चिलियायमन के नाम बिना सक्षम आदेश के इंद्राज हो गया। ऐसा कैसे हुआ इसको स्पष्ट करने वाले न तो कोई दस्तावेज हैं और न ही ऐसी कोई संस्था का संचालन सोहावल में पाया गया। इस मामले में विगत माह बिजु योहन्नन वेरी रेवरेंट अब्रहम जनरल सेक्रेट्री मारथोमा इवान्जिलिस्टिक एसोसिएशन सोसायटी केरला द्वारा कीरर सिंह के वारिस मोहन सिंह, जितेंद्र सिंह रावेंद्र सिंह आदि के खिलाफ आवेदन लगाया गया। इस आवेदन पर 24 घंटे के अंदर ही निर्णय दे दिया गया।
इस मामले में 23 मार्च को अनुविभागीय अधिकारी द्वारा उन्ही दस्तावेजों के आधार पर यह निर्णय दिया गया कि आराजी क्र. 688 में वेरी रेवरेंट अब्राहम जनरल सेक्रट्री मारिथोमा इवान्जिलिस्टिक एसोसिएशन का भूमि स्वामी के तौर पर खसरा सुधार किया जाय। दिलचस्प बात यह है कि जिन दस्तावेजों के आधार पर यह फैसला दिया गया है , वे दस्तावेज उसे भूस्वामी सिद्ध नहीं करते हैं। जिस दस्तावेज के आधार पर वेरी रेवरेंट के नाम नामांतरण के निर्देश दिए गए हैं उसके अनुसार उक्त जमीन का सौदा 150 रूपए में वेरी रावरेंट के साथ जगजाहिर सिंह, हीरा सिंह के आदि हआ था। यही दस्तावेज बताता है कि जमीन के लिए 10 रूपए बयाने के तौर पर दिए गए।
इसके बाद ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया जो यह प्रमाणित करता हो कि करारानुसार शेष 140 रूपए की रकम अदा कर भू स्वामी से रजिस्ट्री कराई हो। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि क्या राजस्व विभाग ने केवल बैनामा(करारपत्र ) के आधार पर वेरी रेवरेंट का नाम खसरे में दर्ज करने के निर्देश दिए थे?
कहां से आया बेराउंड का भाई
अचानक बेराउंड का भाई इस मामले में कहां से नमूदार हो गया, यह रहस्य ही है। माना जा रहा है कि बेराउंड का भाई अमन एक काल्पनिक नाम है जो महज इसलिए सामने लाया गया कि वाद की स्थिति में मूल भूस्वामी को दरकिनार कर वेरी रेवरेंट का वाद बेराउंड के भाई के साथ चलाया जा सके। जांच में भी इस आशय की पुष्टि हुई है कि सोहावल में ऐसा कोई व्यक्ति मौजूद नहीं है।
याचिकाकर्ताओं का भी मानना है कि प्रशासनिक मशीनरी को गुमराह करने के लिए यह नाम शामिल किया गया है ताकि मूल भू स्वामी उक्त जमीन पर दावा न कर सके और मामला त्रिपक्षीय बन सके। संभवत: यही कारण है कि पहले तो प्रकरण बेराउंड के भाई अमन जनरल सेक्रेट्री एसोसिएशन चिलियायमन निवास सोहावल के नाम से चला लेकिन 23 मार्च को दिए आदेश में बिजु योहन्नन वेरी रेवरेंट अब्रहम जनरल सेक्रेट्री मारथोमा इवान्जिलिस्टिक एसोसिएशन सोसायटी केरला के नाम नामांतरण के निर्देश दे दिए गए।