3 हजार से भी ज्यादा स्कूल इतनी ही आंगनबाड़ी, फिर भी 17.2 फीसदी बच्चों का कहीं दाखिला नहीं

सतना। जिले में 3 हजार से भी अधिक प्राइमरी और मिडिल सरकारी स्कूलें हैं। इतनी ही आंगनबाड़ियां और तो और 1 हजार से भी अधिक कक्षा आठवीं तक के प्राइवेट स्कूल इन सबके बाद भी जिले के 17.2 फीसदी बच्चों का कहीं दाखिला नहीं हो सका। असर की अर्ली ईयर रिपोर्ट में इस बात की पोल खोली हैं। यहां के 60 गांव और 1 हजार 3 सौ 65 बच्चों के बीच इस बात का सर्वे भी किया गया।

प्री स्कूल और स्कूल के बीच हुए इस सर्वे में आंगनबाड़ी सहित प्राइवेट और सरकारी स्कूल लिए गए थे। 4 साल आयु वर्ग के 40.1 फीसदी बच्चे आंगनवाड़ी, 32.5 फीसदी प्राइवेट स्कूलों की एलकेजी-यूकेजी में इसके बाद सरकारी प्राइमरी स्कूलों का नंबर आता है। यहां मात्र 1.8 फीसदी बच्चे ही दर्ज मिले।

इसी तरह स्कूल स्तर पर ले तो सरकारी स्कूलों से ज्यादा एनरोलमेंट प्राइवेट स्कूलों का मिला। सरकारी में 4.1 और प्राइवेट में 4.3 फीसदी बच्चे दर्ज मिले। हालांकि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई वैसे-वैसे गैर दाखिले का आंकड़ा भी कम रहा। 5 साल के 7.4, छह साल के 2.3, सात साल के 1.4 और आठ साल के 0.4 फीसदी बच्चे इस श्रेणी में आए। 

लक्ष्य से 23 हजार कम बच्चे 
इस साल कक्षाओं तक बच्चों को लाने के लिए शाला गृह संपर्क अभियान चलाया गया था। सितम्बर माह 2019 के अंतिम सप्ताह तक चले इस अभियान के बाद भी कक्षा एक में प्रवेश का लक्ष्य पूर्ण नहीं हो सका। बताया गया है कि राज्य शिक्षा केन्द्र ने जिले को कक्षा एक में प्रवेश कराने के लिए 74 हजार 7 सौ 15 बच्चों का लक्ष्य दिया था जिसमें से 50 हजार 9 सौ 44 का ही दाखिला हो सका। यानि 23 हजार 7 सौ 66 बच्चे लक्ष्य प्राप्ति से दूर रह गए। इसमें 12 हजार 7 सौ बालक और 11 हजार 66 बालिकाएं शामिल हैं। 

2 हजार शालात्यागियों का दाखिला 
सरकारी आंकडे पर भरोसा करें तो इस सत्र में 2 हजार शालात्यागी बच्चों का दाखिला कराया गया। इनके लिए राज्य शिक्षा केन्द्र ने जिले को 41 हजार 82 बच्चों का लक्ष्य दिया था। जिसमें से 14 हजार 7 सौ 18 बच्चे प्रवेश लायक मिले थे। शालात्यागी ऐसे बच्चे थे जिन्होने बीच में सरकारी स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी थी इसके लिए जिले में सेतु कार्यक्रम भी चलता है जिसके तहत हॉस्टल भी खोले गए हैं।