दिव्य विचार: निष्ठा, लगन और श्रद्धा से करें कार्य- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: निष्ठा, लगन और श्रद्धा से करें कार्य- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आप लोग बोलते हो, तुमसे लागी लगन ले लो अपनी शरण पारस प्यारा, मेटो-मेटो जी संकट हमारा। जब हम बोलते हैं तो भगवान पारसनाथ मन ही मन हँसते होंगे कि ये लगन बोलता तो है, लगन-मगन है नहीं क्योंकि जो औरों में मगन है, उसकी मुझसे क्या लगन होगी। जो दुनिया में मगन है, उसकी प्रभु से लगन नहीं हो सकती। ललक को लगन में बदलिए, एकदम तत्पर हो जाइए, समर्पित हो जाइए। समझ गए? वह लगन लगे, आप लोग बोलते हैं, लागी लगन नहीं तोड़ना, प्रभु जी मोरी लागी लगन नहीं तोड़ना । तब भगवान कहते हैं- तोड़ने वाला मैं थोड़े ही हूँ, न मैं लगन लगाता और न तोड़ता हूँ। तू ही लगाता है, तू ही तोड़ता है। अगर तेरे अन्दर यह भाव है कि मेरी लागी लगन टूटे नहीं, मेरी लगन लगी रहे, कभी टूट न पाए तो तुझे चाहिए- बाकी सब के लगाव को घटाएँ, अपने अन्दर ललक जगाएँ और पूरा जो है, यहाँ समर्पित कर दे। लगन निष्ठा से जुड़ा हुआ है। लगन और निष्ठा से पूर्ण श्रद्धा के साथ तत्परतापूर्वक काम करो। हमने जो मार्ग पकड़ा है, उस मार्ग में मेरी पूर्ण लगन होनी चाहिए। मैं मुनि बना, आत्मा से लगाव हुआ, धर्म से लगाव हुआ, मुनि बना। आत्मा के कल्याण की प्रबल ललक जगी, मैंने दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद जब मैं मुनि बन गया, आज भी मेरे मन में मेरे मुनिपने को निभाने की लगन है तब मैं मुनिपने में टिका हूँ। मेरी लगन अगर थोड़ी सी भी गड़बड़ा जाए, कमजोर हो जाए तो क्या होगा? तुम लोगों को मुनि दिखूंगा पर मैं भीतर से मुनि नहीं रह सकूँगा। तुम्हे मुनि दिखूंगा पर मैं भीतर से मुनि रह सकूँ, यह कोई जरूरी नहीं, क्यों? ललक नहीं है। तुम जो पाना चाहते हो, उसके लिए लगन लगाओ, लग जाओ, इधर-उधर मत देखो, फिर कहीं मगन नहीं होना। लगन लगेगी तभी लक्ष्य को प्राप्त कर पाओगे, बिना लगन के लक्ष्य प्राप्त नहीं होता, समझ गए? बिना लगन के लक्ष्य तक पहुँचा नहीं जाता, मेरे मन में कितना भी लगाव हो।