दिव्य विचार: धर्म को आत्मसात कर आगे बढ़ें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अब वक्त थमने का आ गया है, तय करो, कब तक मुझे सक्रिय गृहस्थी में रहना है, कब तक मुझे व्यापार-धन्धे में उलझना है। अब तो विराम लो, कब तक मौज मस्ती में लीन होना है, कहीं तो रुको। केवल भागते ही रहोगे, भागते रहोगे तो हाल बहुत बुरा होगा, थक जाओगे इसलिए थकने से पहले थमो। थम कर क्या करो? थामो...। किसको थामो? धर्म का दामन थामो। किसको थामना है? धर्म का दामन थामो, धर्म को अंगीकार करो, धर्म को आत्मसात करके अपने जीवन को आगे बढ़ाओ, तभी तुम्हारा उद्धार होगा। एक बात बताओ- जब कोई थक जाए और थकने के बाद वह किसी को थाम ले तो थकान कम होती है कि नहीं होती? बोलो... पर मैं आपसे कहता हूँ, आजकल लोग धर्म के क्षेत्र में आते हैं, पर कब? जब थक जाते हैं तब। आज जितने भी साधु-सन्त हैं, जिनके धर्मोपदेश-प्रवचन होते हैं, आप देख लो उनकी सभाओं में प्रौढ़ और बुजुर्ग मिलेंगे, युवा कम मिलते हैं, बहुत कम अनुपात। देखें तो 10 का भी नहीं होगा, ज्यादातर सीनियर सिटीजन होते हैं, क्यों? जिन्दगी से थक जाते हैं, तब उनको समझ में आता है कि धर्म करता है। उस समय उनका शरीर कुछ भी करने लायक नहीं रहता। देखो - चेयर पर बैठने वालों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। अब मैं उन्हें कहूँ- पद्मासन लगाकर सामायिक करो, तो करने लायक बचे ही नहीं। प्रारम्भ से ऐसे किए, होते, जमीन से जुड़े होते तो आज यह दशा नहीं होती। मैं तो ऐसे लोगों को कहता हूँ- थोड़ा पुण्य किया तो आसन मिल रहा है, ज्यादा कर लेता तो सिंहासन मिल जाता लेकिन यह क्या है? सब थकने के बाद सोचते हैं, आप देखिए सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए जब आप किसी पार्क में जाएँगे तो वहाँ सब प्रौढ़ और बुजुर्ग दिखेंगे, युवा नहीं दिखेंगे, क्यों? थकने के बाद थमते हैं, थकने से पहले थम जाओ तो तुम्हें किसी को थामने की जरूरत नहीं होगी ।