दिव्य विचार: इच्छाओं में उलझ जाता है व्यक्ति- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि, लग्जीरियस टाइप (सुविधावादी)। रहने के लिए घर चाहिए तो ऐसा-वैसा घर नहीं, शहर के किसी पॉश एरिया में घर होना चाहिए, देखने में आकर्षक होना चाहिए, बढ़िया फर्नीचर होना चाहिए, ये सब हो तो घर, घर है। महाराज साधारण सा मकान तो साधारण ही होता है। ये बात और है कि जब तुम्हारा अपना घर नहीं था तब तुमने सोचा था कि कैसे भी हो, अपनी पक्की छत हो जाए। अब समर्थ हो गए, घर बन गया तो अब मन में विचार आता है कि किसी पॉश एरिया में घर होना चाहिए, बढ़िया घर, अच्छा फ्लैट होना चाहिए, उसका अच्छा फर्नीचर होना चाहिए ये लग्जीरियस (सुविधावादी) में आ गया। भोजन की आवश्यकता है, दो वक्त की रोटी आप कभी भी खा सकते हो लेकिन नहीं, हमारा भोजन और अच्छा होना चाहिए, अच्छे से अच्छा भोजन होना चाहिए। चलो इसको भी मान लिया। कपड़े चाहिए लेकिन कपड़े भी ऐसे-वैसे नहीं होने चाहिए, ब्राण्डेड होने चाहिए, इसको भी मान लिया। ये आवश्यकता नहीं है, ये सब इच्छा से प्रेरित परिणति है। इच्छा से प्रेरित होने के कारण मनुष्य उसमें उलझ जाता है। संत कहते हैं इस पर भी यदि तुम एक जगह थम जाओ तो तुम्हारे जीवन में अशांति नहीं होगी लेकिन आप कभी थमते ही नहीं। आवश्यकताओं की पूर्ति करो पर कितनी आवश्यकता इसका विचार करो। कितनी भूख लगी है? भोजन की आवश्यकता है तो हो सकता है किसी का पेट दो रोटी में भर जाए और किसी का पेट बीस रोटी में भरे। पेट भर जाने के बाद अगर उस व्यक्ति से कुछ कहा जाए, चाहे आग्रह किया जाए, मनुहार किया जाए कि कुछ और खा लो वह साफ इंकार कर देता है कि भाई ! पेट भर गया, अब मैं रसगुल्ला भी स्वीकार नहीं कर सकता, मुझे इसकी जरूरत नहीं क्योंकि मेरी आवश्यकताओं की पूति हो गई।