दिव्य विचार: आदरपूर्ण शब्दों का प्रयोग करें - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: आदरपूर्ण शब्दों का प्रयोग करें - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते है कि आदरपूर्ण शब्दों का प्रयोग कीजिए, अनुरोध की भाषा का इस्तेमाल कीजिए। आदेश की भाषा से अपने आपको दूर रखें। अनुरोध हो, रिक्वेस्ट हो, ऑर्डर की भाषा न हो। अगर आपसे कोई बोले- भाईसाहब ! यह काम कर लीजिए न, आपको अच्छा लगेगा कि नहीं। महाराज ! करने का मन नहीं भी होगा तो भी कर लेंगे। यह कह दिया कि ये काम करो ! तो आप कहेंगे अपना रास्ता नापो, नौकर समझ रखा है क्या बाबूजी का? क्या हुआ? हम कैसी भाषा का प्रयोग करते हैं? अगर हमें अपने सम्बन्धों में स्थिरता लानी है तो हमें चाहिए कि हम एक-दूसरे के आदर का ध्यान रखें। मेरे सम्पर्क में कई लोग हैं, जो अपने घर में एक दूसरे का आदर रखते हैं। यहाँ तक कि नौकर-चाकर को भी जी लगाकर बोलते हैं। सम्बन्ध अच्छे होंगे कि नहीं? होंगे ही। पहली बात- समादर। दूसरी बात- सहयोग। एक दूसरे का सहयोग। सहयोग देने की प्रवृत्ति जिनके मध्य होगी, उनके सम्बन्ध कभी बिगड़ नहीं सकते। तुम लोग देखो, तुम लोग एक दूसरे का सहयोग करते हो कि नहीं। क्या स्थिति है तुम्हारी? किसी के सहयोग का मौका आता है तो तुम कर पाते हो कि नहीं कर पाते? भाई भाई का सहयोग करता है या नहीं करता? पिता-पुत्र में सहयोग से सम्बन्ध है या नहीं? आप देखिए- देवरानी-जेठानी में सहयोग के सम्बन्ध हैं या नहीं? आप अगर एक दूसरे का आदर करते हो और एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना रखते हो तो सम्बन्ध कभी बिगड़ नहीं सकते। कैसा सहयोग है आपका? आप अपने सम्बन्धों को बनाना चाहते हैं तो मैं एक सवाल करता हूँ। मान लो ! तुम्हारे छोटे भाई के यहाँ शादी हो और अगर वह तुमसे बर्तन माँगने आया तो गिनकर दोगे या बिना गिने ? गिनोगे कि नहीं, बोलो? तुम बगैर गिने नहीं दे सकते क्या?