दिव्य विचार: पैसा बड़ा या पुण्य? - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि पुण्य की उपयोगिता मैं आपको बताता हूँ- आपके पास पैसा है, आपने अच्छा भोजन अपने सामने रख लिया, पैसे से आपने भोजन जुटा लिया पर उसे पचाने की ताकत तो पुण्य ही देता है। आजकल यह ताकत सेठों को नहीं है। पैसा है, पचाने का पुण्य नहीं। रसोइए ने एक सेठ की थाली परोसी, रोटी में घी ज्यादा थी। सेठ ने कहा- रोटी में इतनी घी क्यों? रसोईया बोला- सेठ साहब। माफ करना गलती से मेरी थाली आ गई। उसको इतना पुण्य कहाँ, जो उसे खा सके, पैसा तो है पर पुण्य नही है। बडे-बडें सेठों के निकट जाकर देखो क्या खाते है? ब्लड प्रेशर है, डायबिटीज है, किडनी में प्रॉब्लम है, पच्चीस बीमारियाँ हैं, मूंग की दाल का पानी और रूखी रोटी, यही खाने को नसीब होता है, उबली लौकी। नौकर-चाकर गुलछरें उड़ा रहे हैं, कुत्ते कार में घूम रहे हैं और सेठ जी बिस्तर पर पड़े हैं। पैसे की उपयोगिता है कि पुण्य की उपयोगिता? वहाँ एहसास होता है कि काश! मेरे पल्ले में पुण्य होता तो यह दुःसंयोग मेरे साथ नहीं जुड़ता। कभी सोचा? पर महाराज ! क्या बताऊँ? पूरा जीवन बिता दिया मैंने पुण्य का कोई महत्त्व ही नहीं सोचा, मुझे तो अपने पैसों पर अहंकार रहा, पैसों पर भरोसा रहा। खाओ... पैसे, बिना पुण्य के रोटी नहीं खा सकते। मुझसे एक सज्जन ने एक बार कहा वह महानगर में रहते थे, बोले- महाराज! हमसे ज्यादा पुण्य तो हमारे नौकर-चाकरों का है, पूछा- क्यों? महाराज ! प्रतिदिन एक डिब्बा मिठाई आती है किसी न किसी के यहाँ से पर मुझे ब्लड प्रेशर है, मेरी पत्नी डायबिटिक है, हम लोग खा नहीं पाते और हमारे बेटे-बहू अपना फिगर बनाने के चक्कर में नहीं खाते हैं, सारा माल नौकर-चाकर खाते हैं। है यह चक्कर, क्या हुआ? पैसा मनुष्य अपने पुरुषार्थ से कमा सकता है पर उसका उपभोग करने के लिए पुण्य चाहिए तो पैसा बड़ा या पुण्य? तुम्हारे पास खूब पैसा है, शरीर में सत्त्त्व नहीं है तो किसी काम का नहीं।