दिव्य विचार: असभ्य वचनों का प्रयोग न करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: असभ्य वचनों का प्रयोग न करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बोलने की हमारे पास एक बहुत बड़ी शक्ति है और उस शक्ति का उपयोग भी हमें उसी अनुरूप करना चाहिए। व्यर्थ-बकवाद करने वाले का कोई मूल्य नहीं होता है। आप लोग बोलते हो तो काम की बातें करो, फालतू बात मत करो। कई बार जब आप बोल देते हैं, मुँह से कुछ अनर्गल निकल जाता है तो आपके मुँह से निकलता है बेफालतू में हमने बोल दिया, फालतू में हमने बात का बतंगड़ बना दिया, बोलते हैं न आप? ऐसा कई बार होता है। फालतू बात करने का मतलब क्या है? अधिक बकवास करना, अर्थहीन बोलना, अनियन्त्रित बोलना, असभ्य वचनों का या अप्रासंगिक बात करना, कुछ लोगों के साथ ऐसा होता है। उनके लिए बुन्देलखण्ड में एक शब्द आता है- लबरा, जो लबर, लबर, लबर, लबर करे, मतलब व्यर्थ बकवास करे, जिसका मतलब कुछ नहीं। बोलने की आदत होती है, वाचालता है। इससे मनुष्य का महत्त्व कम हो जाता है। मैं आपसे एक सवाल करता हूँ, जो आदमी बात-बात पर जरूरत से ज्यादा बोलता है, आप उससे अपना व्यवहार रखना चाहते हो या नहीं। क्यों नहीं चाहते? अरे भैया! इससे बात करने का मतलब अपना समय बर्बाद करना। अगर कहीं मिल गया तो जल्दी से जल्दी पिण्ड छुड़ाना चाहते हैं। जो भी व्यक्ति फालतू की बातें करेगा वह अपने जीवन को अप्रासंगिक बना देगा, लोग उसको लाइक नहीं करेंगे, उसकी लाइकिंग कम होगी, यह सब नेचुरल है। नेचुरली ऐसा होगा। हमें यह देखना है कि मैं फालतू बातें तो नहीं करता, फालतू की बातें, बिना सिर-पैर की बातें, जहाँ शुरु हो गई वहाँ शुरु हो गई, यह आदत होती है। वह अपनी आदत का शिकार होकर इस तरह की बातों की एक बार शुरुआत करके बस चालू तो चालू, उसमें रुकने का नाम ही नहीं रहता, व्यर्थ की बकवास करने की आदत से बचें।