दिव्य विचार: विनम्र बनो, सम्मान करना सीखो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते है कि जहाँ संबंध खराब होने लगें वहाँ अपने अभिमान को गौण कर दो। लेकिन क्या करें 'मैं' तो आज कल बच्चे-बच्चे में भरा पड़ा है। छोटा सा बच्चा भी बड़ा इगोइस्ट (घमण्डी) होता है। उसके मन के विरुद्ध कुछ कर दो तो देखो बच्चा कैसे पैंतरा बदलता है। एक बच्चा अचानक रोना शुरु कर दिया और रोया तो माँ ने पूछा- बेटा क्यों रो रहे हो? बोला मैं गिर गया था। कब गिरा था? 9 बजे। तो अभी क्यों रो रहे हो? बच्चा बोला- उस समय कोई देखने वाला नहीं था। बच्चा तभी रोता है जब कोई देखने वाला होता है। ये मान बहुत खतरनाक होता है। इससे अपने आप को बचाना चाहिए। जहाँ मन की शांति भंग होने लगे वहाँ अहंकार की पुष्टि मत करो। धर्म का कार्य जहाँ करना हो। वहाँ अहंकार को पुष्ट मत करो। यदि सम्बन्धों में खलल आए तो अहंकार को तिलांजलि दे दो, मन की शांति खण्डित होने लगे तो अहंकार को तिलांजलि दे दो, धर्म कार्य में बाधा आने लगे तो अहंकार को तिलांजलि दे दो। यदि इन तीन जगह में आप अपने अहम की पुष्टि बंद कर दोगे तो आपके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन घटित हो सकता है। पहली बात कभी मान न करें। दूसरा है सम्मान। सम्मान मतलब आदर। क्या करें मार्दव धर्म कहता है औरों का सम्मान करो, सम्मान की चाह मत करो। दूसरों का सम्मान करना मतलब आदर करना, विनय करना। यदि कोई तुमसे छोटा भी हो पर किसी तरह किसी गुण में तुमसे श्रेष्ठ है तो विनम्र बन जाओ, उसका सम्मान करो, उसका सत्कार करो, उसका आदर करो। जो महान लोग होते हैं वे खुद का कभी मान नहीं करते। चाहे कितने ऊँचे क्यों न हो जाएँ पर दूसरों का सदैव सम्मान करते हैं। सम्मान करना विनम्रता की पहचान है। जो एक अच्छे मनुष्य के भीतर अनिवार्यतः होती है। मान नहीं करना और सम्मान में पीछे नहीं हटना। खुद का सम्मान नहीं चाहना, औरों का सम्मान करना।