59 करोड़ का तेंदूपत्ता न उठाने वाले 17 ठेकेदार डिफाल्टर, 40 कतार में
सतना | वन विभाग ने जिस तेंदूपत्ता की तुड़ाई पर लाखों रुपए का बजट खर्च कर गोदामों में भंडारित कराया,उसे आज कोई पूछने को तैयार नहीं है। हालात ऐसे है कि, विभाग से तेंदूपत्ता खरीदने का अनुबंध करने वाले ठेकेदार भी एक-एक कर डिफाल्टर होते जा रहे है। उल्लेखनीय है कि, वर्ष 2017 से 2019 के दौरान 42 समितियों ने 2 लाख 69 हजार 422 मानक बोरा तेंदूपत्ता का संग्रहण किया। इसमें से 59 करोड़ 68 लाख कीमत का 1 लाख 84 हजार 83 मानक बोरा तेंदूपत्ता का स्टॉक सरकारी व निजी गोदामों में भंडारित है। वन विभाग के आला अधिकारी भी परेशान है कि, तेंदूपत्ता खराब हुआ तो उसकी भरपाई कैसे हेगी।
61 खरीददार,17 डिफाल्टर
जानकारी के अनुसार, तीन वर्ष में संग्रहित किए गए तेंदूपत्ता में से वर्ष 2017 का करीब 800 मानक बोरा शेष है। इसी तरह वर्ष 2018 और 2019 में संग्रहण कर भंडारित किया गया तेंदूपत्ता जस की तस स्थिति में रखा है। 2017-2018 का तेंदपूत्ता खरीदने का अनुबंध करने वाले 21 ठेकेदारों में से 17 कालातीत हो चुके है। वहीं वर्ष 2019 में टेंडर डालने वाले लगभग 40 अनुबंधकर्ताओं के पास भी मार्च तक का समय शेष है। अगर इसके पहले इनके द्वारा उठाव नही किया गया तो वन विभाग इन्हें डिफाल्टर कर अमानत राशि जप्त करेगा।
(संग्रहण मानक बोरा)
वर्ष संग्रहण शेष स्टॉक कीमत+अन्य खर्च
2017 93639.229 8000 2 करोड़ 40 लाख
2018 84687.453 84687.453 25 करोड़ 41 लाख
2019 91095.705 91095.705 31 करोड़ 89 लाख
कौडिय़ों के दाम भी नहीं बिक रहा पत्ता
वन विभाग से जुड़े जानकारों की मानें तो खरीददारों ने निविदा में 2500 से 5000 रुपए में हरा सोना खरीदने का अनुबंध कर दिया लेकि न जब बात पैसा जमा करने की आई तो ठेकेदार रेट अधिक होने की बात कहकर उठाव में आनाकानी करने लगे। वर्ष 2017,2018 में लगभग 3000 और 2019 में 3500 रुपए प्रति हजार तेंदूपत्ता की तुड़ाई के अलावा परिवहन व भंडारण पर विभाग ने खर्च किए । जिसे आज कोई कौड़ियों के दाम यानि 1500-2000 रुपए में भी लेने को तैयार नही है। विभाग के जिम्मेंदार तेंदूपत्ता न बिकने की बात पर डिमांड न होना बताकर मामले से पल्ला झाड़ लेते है।
बढ़ी मजदूरी बनी गले की फांस
प्रदेश की तत्कालीन भाजपा व वर्तमान की कांग्रेस सरकार की दरियादिली आज वन विभाग के गले की फांस बन गई है। क्योंकि 1250 रुपए प्रति हजार पत्ता तुड़ाई की मजदूरी वर्ष 2017 में बढ़कर 2000 रुपए पहुंच गई थी। फिर आदिवासी अचंल के मजदूरों को साधने के लिए कांग्रेस की सरकार ने सत्ता में आने से पहले इसे 2500 रुपए प्रति हजार करने का वादा किया था,बेशक सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने अपना वादा पूरा किया। गरीबों पर रहम आज वन विभाग और सरकार दोनो पर भारी पड़ रही है। यहीं वजह है कि तीन वर्षो तेंदूपत्ता सड़ने की कगार पर पहुंच रहा है।
वन विभाग से अनुबंध करने के बाद भी समय पर तेदंपूत्ता का उठाव न करने वाले वर्ष ठेकेदार डिफाल्टर हुए है,उनकी अमानत राशि भी जप्त कर ली गई है।
राजीव मिश्रा, वन मंडलाधिकारी सतना