दिव्य विचार; कुदरत के कानून से नहीं बच सकते- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते है कि देश के कानून से बच सकते हो ईश के कानून से नहीं। कानून में तो फिर भी ऐसी गुंजाइश है कि अपराधी अपराध करके भी बच जाए पर कुदरत के कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं? वहाँ तो जो अपराध करता है, उसे अपराध का परिणाम, पाप का परिणाम भोगना ही पड़ता है। पाप से डरो। अपराध तो वह है, जो बाहर प्रकट हो जाता है, पाप मन में पलता है। कानून अपराध को नियन्त्रित कर सकता है लेकिन पाप को नियन्त्रित करने के लिए तुम्हें खुद को जगाना होगा। पाप करने से बचना है तो पहले पाप से डरो। कुछ पाप से डरते हैं और कुछ पाप करके डरते हैं। पाप से डरने वाला पाप करता नहीं और पाप करके डरने वाले का रास्ता प्रशस्त नहीं होता। पाप करके डरने से क्या पाओगे? अरे ! हमसे पाप हो गया अब क्या करें? करो टेंशन, भोगो... पाप का फल सन्ताप है। पाप करने से डरो, पाप करके मत डरो। पाप करने से डरोगे तो पाप होगा ही नहीं, करके डरोगे तो बच नहीं पाओगे। आप अपनी रुचि बदलिए, पाप रुचि से बाहर आइए। जिनकी पाप रुचि अधिक होती है वे पापी होते हैं, पाप बेखौफ करते हैं। अपने आप को सौभाग्यशाली मानो कि तुमने एक ऐसे कुल में जन्म लिया, जहाँ पीढ़ियों से तुम्हारे अन्दर अहिंसा, करुणा, दया के संस्कार है। एक चींटी भी अगर धोखे से मर जाए तो हृदय में पीड़ा होती है। यह तुम्हारा महान् सौभाग्य है कि तुम्हारे लिए जन्म--घुट्टी में दया के संस्कार है, पाप-भीति के संस्कार हैं इसलिए प्रवृत्तिगत बहुत सारे पाप से अपने आपको बचा लिए। धरती पर ऐसे भी अनेक लोग हैं जो बेखौफ होकर पाप करते हैं, जो जानवरों की खाल को घास- फैंस की तरह उखाड़ डालते हैं।