मिशन माफिया अभियान की निकली हवा, नाम सामने आते ही कार्रवाई करने से पीछे हटा प्रशासन
रीवा | शासन का मिशन माफिया अभियान जिले में दम तोड़ रहा है। प्रशासन द्वारा तैयार की गई कुंडली में नाम सामने आते ही कार्रवाई करने में अब हाथ-पांव फूलने लगे हैं। दरअसल अपनी कमी को छिपाने के लिए अधिकारी अब झोपड़ियां गिराकर वाहवाही लूट रहे हैं। शहर से लेकर पूरे जिले में सरकारी भूमियों पर अवैध कब्जे से लेकर बनाई गई बहुमंजिला इमारतों के चिन्हित हो जाने के बाद भी उन पर कार्रवाई करना प्रशासनिक अधिकारियों के लिए चुनौती बनता जा रहा है।
शहर से लेकर कस्बाई इलाकों में करोड़ों की शासकीय जमीनों पर भू-माफियाओं ने राजस्व अधिकारियों की साठगाठ से कब्जा कर बहुमंजिला इमारतें बना ली हैं। शासन द्वारा मिशन माफिया अभियान में इन्हें नेस्तनाबूद की तैयारी में भले ही प्रशासन द्वारा नाम चिन्हित किए गए हों परंतु महीनों बीत जाने के बाद भी जिले के किसी भी क्षेत्र में एक भी घर नहीं गिराए गए हैं। इतना ही नहीं शासकीय तालाबों एवं वन भूमियों पर किए गए कब्जे को भी प्रशासन नहीं हटा सका है। कार्रवाई के नाम पर गरीबों की झोपड़ पट्टी गिराकर अपनी पीठ थपथपाने वाले प्रशासनिक अधिकारियों ने एक भी ऐसी कार्रवाई नहीं की है जिस तरह अन्य जिलों में की गई है। ऐसे में अब यह साफ लगने लगा है कि मिशन माफिया की कार्रवाई रीवा जिले में दम तोड़ रही है।
शहर में कई अवैध भवन
शासकीय भूमियों पर शहर में ही कई इमारतें खड़ी कर दी गई हैं जिनमें अब शासन के स्थान पर माफिया का आधिपत्य माना जा रहा है। कई ऐसे भी भवन बनाए गए हैं जिन पर नगर निगम से अनुमति नहीं ली गई और कई मंजिला निर्माण कर लिया गया है। यह जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों को होने के बावजूद भी अब तक उन भवनों को जमीदोज करने की हिम्मत प्रशासन नहीं जुटा पाया है। इतना ही नहीं कई शासकीय भूमियों को राजस्व रिकार्डों में छेड़छाड़ कर उन्हें अपने नाम करा लिया है। जबकि रिकार्ड आज भी यह बता रहे हैं कि पूर्व में इन भूमियों पर मप्र शासन अंकित था। ताज्जुब की बात तो यह है कि शासकीय भूमियों का नामांतरण किस आधार पर किया गया, यह भी अधिकारी बता पाने की स्थिति में नहीं हैं।
इस तरह हुई प्रशासनिक कार्रवाइयां
जिले में मिशन माफिया की कार्रवाई जिस तरह प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई है, उससे यह साफ हो जाता है कि जो वास्तव में सरकारी भूमियों पर अवैध कब्जा कर निर्माण कर लिए हैं, उनके आशियानों को न तोड़कर मजदूरों द्वारा बनाई गई झोपड़ियों को गिराया गया है।
केस नं. 1
शहर के इटौरा बायपास में मजदूरों द्वारा दो दर्जन से ज्यादा झोपड़ियां बनाई गई थीं जहां पर वह अपने परिवार के साथ रहकर मजदूरी करते थे। पिछले दिनों प्रशासनिक अधिकारियों ने पूरे दल-बल के साथ उन झोपड़ियों को नेस्तनाबूद कर दिया। हास्यास्पद पहलू यह है कि जिन झोपड़ियों को प्रशासन द्वारा गिराया गया है उसे माफिया का नाम दिया गया है। हालांकि प्रशासन द्वारा चलाए गए बुलडोजर के बाद नगर निगम प्रशासन ने उन्हें दूसरी जगह बसा दिया।
केस नं. 2
गोविंदगढ़ तालाब में झुग्गी झोपड़ी बनाकर अपनी रोजी रोटी चलाने वाले तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा गरीब परिवारों की झोपड़ी गिराकर प्रशासनिक अधिकारियों ने वाहवाही लूटी है। जबकि जिन झोपड़ियों को गोविंदगढ़ तालाब की मेड़ से गिराया गया है उनमें छोटी मोटी चाय पान की दुकानें खोली गई थीं।
केस नं. 3
सिरमौर में नेशनल हाइवे के किनारे शासकीय भूमि में दो दर्जन से ज्यादा पक्के एवं कच्चे मकान बनाए गए थे। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद दिखावे के लिए अधिकारियों ने मात्र बाउंड्रीवाल को गिराकर यह जानकारी भेज दी गई कि वहां से पूरा अतिक्रमण समाप्त कर दिया गया है। जबकि सिरमौर से डभौरा मार्ग में बनी दो दर्जन पक्के दोमंजिला मकानों को गिराने की पूरी योजना भी बनाई गई थी जो सफल नहीं हो पाई है।