चालीस साल बाद भाजपा ने तोड़ा कांग्रेस का रिकार्ड
राजेन्द्र पाराशर भोपाल। प्रदेश में भाजपा ने चालीस साल बाद कांग्रेस के 1984 के सभी सीटों पर जीत के रिकार्ड को तोड़ दिया। इस जीत के शिल्पकाल सत्ता और संगठन दोनों रहे। इस रिकार्ड को तोड़ने का प्रयास पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले चुनाव 2019 में जरूर किया, मगर वे नहीं कर पाए। इस बार मुख्यमंत्री डा मोहन यादव भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के भरोसे पर खरे उतरे और उन्होंने चालीस साल बाद कांग्रेस के रिकार्ड को तोड़कर सभी 29 सीटें भाजपा की झोली में डलवा दी।
मध्यप्रदेश में दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनाव के बाद जब भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व में प्रदेश के मुख्यमंत्री की कमान डा मोहन यादव को सौंपी तब किसी को यह भरोसा नहीं था कि वे भाजपा के लिए इतना बड़ा इतिहास रच देंगे। दिसंबर में मुख्यमंत्री की कमान संभालने के बाद मात्र छह माह के कार्यकाल में उन्होंने ना केवल प्रशासन में कसावट लाने का काम किया, बल्कि भाजपा के संगठन के साथ मिलकर भाजपा की मजबूत नींव को और मजबूत करने का काम करते हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम में इतिहास रच दिया। इस इतिहास को रचने के लिए भाजपा ने 2003 में जब उमा भारती के नेतृत्व में जब सरकार बनाई थी, उसके बाद से प्रयास कर रही थी। 2019 में लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह प्रयास जरूर किया, मगर वे 28 सीटों पर ही भाजपा को जीत दिला सके थे। छिंदवाड़ा सीट पर कमलनाथ के गढ़ को वे भी ढहाने में सफल नहीं रहे। मगर इस बार लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विश्णुदत्त ष्शर्मा के साथ मिलकर इस इतिहास को रच दिया।
अर्जुन सिंह के रिकार्ड को तोड़ा
प्रदेश में 1984 में अविभाजित मध्यप्रदेश में 40 सीटें हुआ करती थी। इस साल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन सभी चालीस सीटों पर जीत का परचम फहराकर भाजपा को करारी शिकस्त दी थी। उस वक्त प्रदेश केक मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे। इसके बाद से कांग्रेस के इस रिकार्ड को तोड़ने के लिए भाजपा लगातार प्रयास करती रही। भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव में विभाजित मध्यप्रदेश की सभी 29 सीटों पर जीत के लिए प्रयास कर रहती रही, मगर भाजपा ऐसा नहीं कर पाई थी। 2014 के चुनाव में 29 सीटों में से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी, मगर दो सीटें फिर भी उसके हाथ से फिसल गई थी। इसी तरह 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को 28 सीटों पर जीत हासिल हुई, मगर छिंदवाड़ा पर वह जीत हासिल नहीं कर पाई। सत्ताधारी भाजपा 2019 में हारी एकमात्र सीट छिंदवाड़ा में अपनी पूरी ताकत लगा रही है, ताकि वह मध्यप्रदेश की सभी सीटें जीतने का रिकॉर्ड भी बना सके।
प्रदेश विभाजन के बाद इस तरह रहे परिणाम
छत्तीसगढ़ विभाजन के बाद प्रदेश में 29 लोकसभा सीटें शेश रह गई थी। इन सीटों पर 2004 में पहली बार विभाजन के बाद चुनाव हुए थे। इस चुनाव में भाजपा ने 25 सीटों पर जीत दर्ज की। उल्लेखनीय है कि इसके पहले 2003 के चुनाव में उमा भारती के नेतृत्व में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को हटाकर भाजपा में लंबे समय बाद सरकार बनाई थी। इसके बाद 2009 में प्रदेश में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा का ग्राफ फिर गिरा और उसे 16 सीटों पर जीत हासिल हुई। इस चुनाव में कांग्रेस ने 28 सीटों पर चुनाव लड़ा था। एक सीट विदिशा में उसके प्रत्याशी राजकुमार पटेल ने नामांकन फार्म के साथ बी फार्म नहीं भरा था इसके चलते उनका नामांकन निरस्त हो गया था। इस चुनाव में कांग्रेस को 12 और बसपा को 1 सीट पर जीत हासिल हुई थी। इसके बाद 2014 में भाजपा ने प्रदेश की 29 में से 27 और 2019 में 29 में से 28 सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा इन चुनावों में चाहकर भी पूरी 29 सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाई थी। मगर इस बार 2024 में भाजपा को मुख्यमंत्री डा मोहन यादव के नेतृत्व में वह सफलता हासिल हो ही गई। भाजपा ने इस रिकार्ड को तोड़कर इतिहास रच डाला।
पहली परीक्षा, सौ फीसदी परिणाम
दिसंबर 2023 में मुख्यमंत्री बनने के बाद डा मोहन यादव के लिए लोकसभा 2024 का लोकसभा चुनाव पहली परीक्षा थी। इस परीक्षा में केन्द्रीय नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश की सभी 29 सीटों पर जीत का लक्ष्य दिया था। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने इसे लक्ष्य को चैलेंज के रूप में स्वीकार किया और मैदानी सक्रियता दिखाते हुए प्रदेश के हर जिले में पहुंचकर भाजपा की जीत के लिए जो मैदानी काम किया, उसका परिणाम आज प्रदेश में भाजपा को सभी 29 सीटों पर जीत के रूप में दिया। भाजपा के मिशन 29 को कामयाब करने के लिए उन्होंने संगठन के साथ मिलकर कार्यकर्ता का मनोबल कुछ इस तरह बढ़ाया कि चालीस सालों बाद भाजपा के लिए इस तरह की जीत का इतिहास बना दिया।