दिव्य विचार : एक दूसरे की प्रशंसा करना सीखो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि हमें धन्यवाद ज्ञापन करने की आदत सीखनी चाहिये। क्या कभी धर्म प्रभावना समिति को धन्यवाद दिया, महाराज, धन्यवाद तो नहीं दिया होगा लेकिन शिकायत जरूर की होगी, गाली जरूर दी होगी यहाँ यह कमी वहाँ वो कमी है। कितनी कृपणता। तुम घर से यहाँ आए तुम्हारा ड्राईवर तुम्हें यहाँ तक लेकर आया कभी ड्राईवर को धन्यवाद दिया कि भैया बहुत धन्यवाद तुम हमें सकुशल पहुँचा दिए बोलो यहाँ तक आने में ड्राईवर का कितना बड़ा रोल हैं। अगर ड्राईवर थोड़ी चूक कर दे तो अस्पताल में जाना पड़ जाए प्रवचन में आने की जगह बोलो उसका रोल हैं कि नहीं हैं तो रिलेशन को मेनटेन करने का पहला सूत्र हम धन्यवाद देना सीखे। किनको इसकी शुरुआत घर से करो अपनो को उनसे हमारी आत्मीयता बढ़ेगी। प्रेम में प्रगाढ़ता होगी। जिसका भी हमारे साथ कोई भी योगदान हैं भैया बहुत अच्छा, बहुत अच्छा यह करना सीख सकते हैं आप। तो पहली बात आप धन्यवाद करना सीखें। दूसरी बात कोई अच्छा करे उसकी प्रशंसा करें। तुमने यह काम बहुत अच्छा किया। मैं आपसे एक सवाल करता हूँ कि आप कोई काम करे और लोग उसकी तारीफ करे तो आपको कैसा लगता हैं, अच्छा लगता हैं। आपकी प्रशंसा होती हैं तो आपको प्रसन्नता होती हैं कि नहीं, बोलो होती हैं तो भैया जब तुम अपनी प्रशंसा सुनकर प्रसन्न होते हो तो, दूसरा भी तुम्हारे जैसा इंसान ही हैं उसकी प्रशंसा करोगे तो वह प्रसन्न होगा और जब सब एक दूसरे की प्रशंसा करेंगे तो घर में प्रसन्नता की किलकारियाँ गूंजेंगी कहाँ तकलीफ होगी। क्यों नहीं सीखते हम एक-दूसरे की प्रशंसा करना। एक-दूसरे की प्रशंसा करना सीखे और हर व्यक्ति को सीने से लगाना सीखे। भैया तुमने यह काम किया, तुममें यह गुण हैं बहुत अच्छा गुण हैं लेकिन लोग आजकल प्रशंसा कम करते हैं, आलोचना ज्यादा करते हैं।