दिव्य विचार: हमेशा जागरूक बने रहो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: हमेशा जागरूक बने रहो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि वहाँ तुम अपने आप पर नियंत्रण रखते तो, ये शक्ति किसने दी? तुम्हारे विवेक ने। तुम यह जानते हो, यह दुकान है, यह दुकानदारी है, वह हमारा ग्राहक है, हमें कस्टमर से कैसे डील करना चाहिए। यदि उसके सामने हम इस तरह पेश नहीं होंगे तो हमारा पूरा व्यापार चौपट हो जाएगा। हमें तो इसी तरीके से रहना है। यह विवेक, यह जागरूकता तुम्हें उस घड़ी संयत बनाती है। तुम्हारा यह विवेक, तुम्हें उस घड़ी संयत बनाता है, जागरूकता से संयम आता है। आ गया अनुभव? आप सड़क पर चल रहे हैं, किसी की रूप-राशि को देखकर मन चल रहा है, लेकिन मन चल गया, आप क्या ऐसा व्यवहार करने के लिए सोचते हो, नहीं। मुझे ऐसा व्यवहार नहीं करना, क्योंकि यदि ऐसा व्यवहार करूँगा तो उसका दुष्परिणाम आएगा, यह परिणाम ठीक नहीं है। मुझे सावधान रहना चाहिए और उसे किसी भी अर्थ में सुधारना चाहिए, सम्हालना चाहिए और आप सावधान हो जाते हो। मन में विकार आया, आपने शान्त कर दिया क्योंकि आपमें विवेक है। जहाँ विवेक है, वहाँ जागरूकता है। विवेक के साथ जब जागरूकता होती है तो मनुष्य का जीवन अपने आप सम्हल जाता है, वह अपने जीवन में स्थिरता ले आता है और जहाँ जागरूकता का अभाव होता है, उसके जीवन में चंचलता आ जाती है। बन्धुओं ! मैं आपसे कहता हूँ- जैसे-जैसे जागरूकता तुम्हारे भीतर बढ़ेगी, तुम अपनी दुर्बलताओं को जीतने में समर्थ बनते जाओगे। अपनी दुर्बलताओं को जीतना है तो जागरूकता बढ़ाओ। सतत जागरूक बने रहो और जागने के बाद जीतना शुरु करो। एक संकल्प लो कि मेरे अन्दर यह दुर्बलता है, मुझे उसे जीतना है। यदि मेरे मन में बात-बात पर गुस्सा आता है, मुझे उसे नियन्त्रित करना है। मेरे अन्दर ईष्या और विद्वेष की भावना प्रबल होती है, मुझे उसे नियन्त्रित करना है। मेरे मन में आलस्य ज्यादा आता है, मुझे उसे दूर करना है।