दिव्य विचार: तय करें विलासिता चाहिए या तृप्ति- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज की चार बातें हैं- आवश्यकता, आकांक्षा, आसक्ति और अतृप्ति। आवश्यकता...... हर प्राणी के जीवन के लिए कुछ आवश्यक साधन चाहिए, उनकी आवश्यकता है। आवश्यकता भी दो प्रकार की है- एक अनिवार्य आवश्यकता जिसके बिना आपका जीवन नहीं चल सकता। जीवन जीने के लिए श्वास की आवश्यकता है, प्राण वायु न हो तो जीवित नहीं रह सकोगे। पानी की आवश्यकता है, पानी न मिले तो जीवन न टिकेगा। भोजन की आवश्यकता है, भोजन न मिले तो तुम्हारा जीवन नहीं टिकेगा। रहने के लिए घर की आवश्यकता है, घर न मिले तो आप ठीक से जी नहीं सकते और पहनने के लिए वस्त्र की आवश्यकता है इसके बिना आपका जीवन नहीं गुजर सकता ये अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं। सन्त कहते हैं धर्म तुम्हें तुम्हारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कतई मनाही नहीं करता। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करो। रहने के लिए घर चाहिए; एक घर बना लो, पहनने के लिए वस्त्र चाहिए; वस्त्र ले लो, खाने के लिए भोजन चाहिए; दो जून की रोटी की व्यवस्था कर लो, इसमें तुम्हें ज्यादा समय नहीं लगता, इसके लिए तुम्हें ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम्हें अपने रहने के मकान के लिए कितने पैसों की आवश्यकता है, तुम्हें अपना पेट भरने के लिए कितने पैसों की आवश्यकता है, तुम्हें अपना तन ढकने के लिए कितने पैसों की आवश्यकता है? तय करो और उसकी पूर्ति कर लो। आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ज्यादा प्रयत्न करने की जरूरत नहीं होती। हर कोई अपनी आवश्यकता की पूर्ति करता है। एक है अनिवार्य आवश्यकता और दूसरी है विलासितापूर्ण आवश्यकता। महाराज ! अब हम लोगों की लाइफ स्टाइल (जीवन शैली) थोड़ी अलग हो गई है।