दिव्य विचार: तृष्णा को अपने ऊपर हावी न होने दें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बढ़ती हुई तृष्णा उसे अंदर से तोड़ देती हैं। जिस मनुष्य के हृदय में ये तृष्णा का विकार जितना प्रभावी होता है, उसका जीवन उतना ही बेकार हो जाता है। वृद्धावस्था में तृष्णा हम पर हावी न हो उसके लिये हमें प्रयास करना है अक्सर ये देखने में आता है कि बस की कुछ नहीं है, फिर भी मन में सब कुछ बसाए रखते हैं। इतनी गाढ़ तृष्णा, इतनी गहरी आसक्ति कि कुछ छुटता नहीं है जोंक कि भांति चिपक जाते हैं। ऐसा जीवन जिओगे तो तुम्हारा जीवन तुम्हारे लिये बोझ बन जाएगा। बुढ़ापे की दहलीज पर पैर रखते ही मनुष्य के हृदय में विचार आना चाहिये अब मुझे सावधान होना है। वृद्ध होने का मतलब क्या हैं? वृद्ध अवस्था का शब्दकोष में अर्थ किया गया है- जीर्ण होना या पुराना हो जाना। जीर्ण होने का मतलब है- कमजोर होना, अब जर्जर स्थिति हो गई है, पत्ता पक गया है तो पकने के बाद क्या होना है, टपकना ही है। और कोई रास्ता है क्या समझ में आ जाए ये ओल्ड चीजें हो गई है तो इसको आज नहीं तो कल छूटना ही है, तो हम इसके प्रति जागरुक बने। आप लोग गाड़ी चलाते हो गाड़ी लेते हो, ब्रांड न्यू गाड़ी चलाते समय आप सबके मन में कुछ अलग विचार होते हैं और जैसे-जैसे गाडी पुरानी होने लगती हैं आप क्या करते हैं? हाँ क्या करते हैं? बेच डालते हैं। गाड़ी को भले ही बेच दो, जिंदगी को मत बेचना लेकिन समझदार आदमी जिसके हाथ ऐसी गाड़ी लगी है जो पुरानी है तो गाड़ी चलाते समय सावधानी रखी जाती हैं कि मेरी गाड़ी को कम से कम मेंटनेंस लगे। हम अपनी गाड़ी को संभाल-संभाल कर के चलाते है। क्योंकि हम को पता है कि यह चीज पुरानी है। घर में तुम्हारे पास एक नई पुस्तक हो उसके पन्ने पलटते समय तुम बहुत आसानी से पलट लेते हो पर कोई जीर्ण-शीर्ण महत्वपूर्ण पुस्तक तुम्हारे हाथ में आती है और उसको पढ़ना चाहते हो तो क्या करते हो? उसे सहेज कर रखते हो, उसके एक एक पन्ने को सावधानी पूर्वक पलटते हो; पुरानी चीजों के प्रति तुम्हारे मन में सावधानी है, तो पुरानी पड़ती जिंदगी के प्रति तुम्हारी क्या सावधानी है?