दिव्य विचार: संयम रखें, मन को अधीर न होने दें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: संयम रखें, मन को अधीर न होने दें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि हम अपने जीवन को प्रतिक्रिया से बचाये। दो शब्द हैं-प्रतिक्रिया और प्रतिभाव, प्रतिक्रिया का मतलब सामने वाले के व्यवहार को देखकर तुरन्त रिएक्शन करना ये प्रतिक्रिया हैं। मुझे किसी ने जोर से कुछ कहा, जोर से हमने भी गुस्से में उल्टा-पुल्टा बोल दिया। कदाचित् परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं रही, मुँह फुलाकर बैठ गये, ये है प्रतिक्रिया । सामने वाले कि बात से प्रभावित हो जाना यह प्रतिक्रिया हैं। प्रतिभाव, किसी ने कुछ कहा तो ठंडे दिमाग से सोचना, क्यों कहा, उसकी वजह क्या हैं? उस वजह को दूर करने की चेष्टा करना यह हैं प्रतिभाव। क्या करते हो प्रतिक्रिया या प्रतिभाव। जिसके मन में अधीरता होती हैं, वह प्रतिक्रिया करते हैं। जिसका मन धैर्य से सम्पन्न होता हैं, वह प्रतिभाव जगाते हैं। प्रतिक्रिया से संबंध बिगड़ते हैं और प्रतिभाव संबंधों को सुधारता हैं। अब तुम्हें तय करना हैं। कि हम क्या करें, प्रतिक्रिया या प्रतिभाव । अपने मन को अधीर नहीं होने दें, यथासंभव संयत रखे, अब देखो आपके घर परिवार में क्या होता हैं। पति दफ्तर में, दिन भर के काम से तनाव, थकान के साथ घर आया, इधर घर में कुछ ऊपर नीचे हो गया। पति आया नहीं और आप भरी हैं, और आप ने अपनी सारी भड़ास निकाल दी। न उससे पानी की पूछी न उससे खाने की पूछी। क्या असर होगा, सामने वाले का खाना भी जहर हो जाएगा। उसकी जगह थोड़ा सा धैर्य रखा और इधर कुछ गड़बड़ हुआ पहले सामने वाले को खाना-पीना खिला कर फिर आपने धीरे से अपनी बात कही। मजा कब हैं, पहले वाले में या बाद वाले में है। एक आदमी मेरे पास बैठा था, बार-बार घण्टी बज रही थी, मेरी उसके स्क्रीन पर नजर पड़ी, उसमें लिखा था दुश्मन। हमने कहा- क्या लिख रखा हैं। किसका फोन हैं तो मुस्कुराने लगा। कहाँ घर से हैं। उठा क्यों नहीं रहा, फोन और उसको दुश्मन क्यों लिखा? महाराज, कोई न कोई शिकायत होगी। टेन्शन में उठाता ही नहीं, मिस काल उठा लेते हैं, लोग मिसेस काल नहीं उठाते, क्यों कोई न कोई फरियाद, कोई न कोई शिकायत, ये माथा-पच्ची कौन करें।